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निबंध

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पत्रकारिता

कृपाशंकर चौबे


भारत के कई राजनेताओं की तरह नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भी स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने के साथ ही पत्रकारिता भी की थी और उसके माध्यम से पूर्ण स्वराज के अपने स्वप्न को और विचारों को शब्दबद्ध किया था। नेताजी ने 5 अगस्त 1939 को अंग्रेजी में राजनीतिक साप्ताहिक समाचार पत्र 'फारवर्ड ब्लाक' निकाला और एक जून 1940 तक उसका संपादन किया। वह बीस पृष्ठों का अखबार था। पहले पृष्ठ पर अखबार का नाम, संपादक का नाम, वर्ष तथा अंक की सूचना और विज्ञापन छपते थे। दूसरे पृष्ठ पर विज्ञापन के अलावा अनुक्रम छपता था जिसमें यह जानकारी दी जाती थी कि किस पृष्ठ पर क्या सामग्री छपी है। तीसरे पृष्ठ पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की लिखी संपादकीय टिप्पणी छपती थी। शेष पृष्ठों पर समाचार, सामयिक लेख, टिप्पणियां, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और साहित्यिक विषयों पर लेख, पुस्तक समीक्षा और संपादक के नाम पत्र स्तंभ छपते थे। एक अंक की कीमत एक आना थी। त्रैमासिक शुल्क एक रुपया, अर्द्ध वार्षिक दो रुपये और वार्षिक शुल्क चार रुपये था। एक संपादकीय नोटिस भी छपती थी जिसमें कहा होता था कि सभी पत्राचार संपादक को संबोधित होना चाहिए न कि कार्यालय के किसी व्यक्ति विशेष को।

नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अपनी पत्रकारिता का प्रत्यय पूर्ण स्वाधीनता के लक्ष्य से जोड़ रखा था। उन्होंने 'फारवर्ड ब्लाक' के सात अक्टूबर 1939 के अंक में 'इंडियाज डिमांड' शीर्षक संपादकीय टिप्पणी में लिखा था, "पूर्ण स्वाधीनता देश की मांग है। वर्धा इस मांग को लेकर देश का नेतृत्व करे।" उस टिप्पणी में वर्धा से नेताजी का आशय महात्मा गांधी से था क्योंकि तब गांधी जी वर्धा में ही रहते थे। नेताजी की उस टिप्पणी से स्पष्ट है कि वे मानते थे कि देश का नेतृत्व करने की सामर्थ्य तब गांधीजी में ही थी। सुभाषचंद्र बोस अपनी धरती पर अपने देशवासियों का अधिकार चाहते थे। उन्होंने 'फारवर्ड ब्लाक' के 14 अक्टूबर 1939 के अंक में 'द न्यू इंडिया' शीर्षक संपादकीय टिप्पणी में लिखा था, "शांति हो या युद्ध, भारत की स्वाधीनता जरूरी है। भारत की जमीन पर उसका अधिकार हो।" स्वाधीनता की लक्ष्यपूर्ति के लिए नेताजी कांग्रेस की एकता के भी हिमायती थे। 'फारवर्ड ब्लाक' के 26 अगस्त 1939 के अंक की 'द नीड आफ द आवर' शीर्षक अपनी संपादकीय टिप्पणी में नेताजी ने लिखा था कि कांग्रेस के दोनों धड़ों को मिलकर पूर्ण स्वराज्य के लिए संघर्ष करना चाहिए। उसी टिप्पणी में सुभाषचंद्र बोस ने यह मत भी प्रकट किया था कि विश्व युद्ध में ब्रिटिश शासन को भारत का मानव संसाधन बिलकुल नहीं दिया जाना चाहिए। उन्होंने लिखा था, "युद्ध के समय हमारी क्या नीति हो, उसे एक स्वाधीन देश ही तय कर सकता है। इसलिए हम अपनी स्वाधीनता की मांग करते हैं और वह हमें हासिल करनी ही होगी। नेताजी ने युद्ध पर गांधी जी और कांग्रेस की नीति की आलोचना की थी। 23 दिसंबर 1939 के अंक में 'द करेक्ट लाइन' शीर्षक संपादकीय टिप्पणी में उन्होंने कहा था कि गांधी जी द्वारा ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग करने का मत प्रकट करना उचित नहीं है। 04 नवंबर 1939 के अंक में 'लूकिंग बैक' शीर्षक संपादकीय टिप्पणी में भी नेताजी ने कांग्रेस की आलोचना करते हुए कहा था, "त्रिपुरी कांग्रेस के छह महीने के भीतर ही यूरोप में युद्ध छिड़ गया और भारत उसमें कूद पड़ा, कांग्रेस नेतृत्व ने अपनी अक्षमता प्रदर्शित की।" इसी तरह 25 नवंबर 1939 के अंक में 'व्हूम दे फाइट' शीर्षक संपादकीय में नेताजी ने लिखा था कि रामगढ़ अधिवेशन में कांग्रेस ने कहा है कि ब्रिटिश सरकार से सम्मानजनक रास्ता निकालने की कोशिश जारी रखी जाएगी। इतनी जानकारी देने बाद नेताजी ने टिप्पणी की थी-अतः कांग्रेस तब तक ब्रिटिश सरकार के चरणों में गिरी रहेगी, जब तक उसे वह लात नहीं मारती। सुभाषचंद्र बोस ने 'फारवर्ड ब्लाक' के 6 जनवरी 1940 के अंक की 'डेंजर अहेड' शीर्षक संपादकीय में कहा था कि संविधान सभा की कांग्रेस कार्य समिति की मांग से पूर्ण स्वराज की राष्ट्रीय मांग कमजोर होगी। उस खतरनाक मांग के खिलाफ आवाज उठाई जानी चाहिए।

देश की पल पल की राजनीतिक गतिविधि पर सुभाषचंद्र बोस सतर्क नजर रखते थे। उन्होंने 'फारवर्ड ब्लाक' के 30 सितंबर 1939 की 'नेशनल डिमांड' शीर्षक संपादकीय में लिखा था कि राष्ट्रपति की वायसराय के साथ होनेवाली बैठक में लोकतंत्र की स्थापना को राष्ट्रीय मांग के रूप में उठाया जाना चाहिए।

सुभाषचंद्र बोस सत्याग्रह की विधि से पूर्ण स्वराज हासिल करना चाहते थे। उन्होंने 2 मार्च 1940 की 'द वे टू स्वराज' शीर्षक संपादकीय टिप्पणी में कहा था, "हमें स्वराज के लिए लड़ना होगा। पूर्ण स्वराज हमारा उद्देश्य है। सत्याग्रह हमारी विधि है।" 16 दिसंबर 1939 की 'ए रिमाइंडर' शीर्षक संपादकीय टिप्पणी में नेताजी ने तीन उद्देश्यों की याद दिलाई थी-वाम समन्वय, कांग्रेस में एकता और स्वाधीनता के लिए राष्ट्रीय आंदोलन। नेताजी श्रेष्ठ राजनीति के शास्त्र को निर्मित करने के भी पक्षधर थे। उन्होंने 'फारवर्ड ब्लाक' के 28 अक्टूबर 1939 की 'हर्ट सर्चिंग' शीर्षक संपादकीय में लिखा था कि भारत इतिहास के कठिन दौर से गुजर रहा है। दुनिया के लिए भी यह कठिन दौर है इसलिए हमें यथासंभव श्रेष्ठ राजनीति का शास्त्र निर्मित करना चाहिए। श्रेष्ठ राजनीति का शास्त्र निर्मित करने का प्रस्ताव नेताजी ने कांग्रेस कार्य समिति को भी भेजा था। सुभाषचंद्र बोस की आकांक्षा थी कि कांग्रेस का वाम धड़ा स्वाधीनता संग्राम में नेतृत्वकारी भूमिका निभाए। इसी आशय का आह्वान करते हुए उन्होंने 'फारवर्ड ब्लाक' के 2 दिसंबर 1939 के अंक में 'एटेनमेंट आफ इंडियाज फ्रीडमः लेफ्ट टू गिव लीड' शीर्षक लेख लिखा था।

नेताजी सुभाषचंद्र बोस आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का सपना देखते थे। उन्होंने 'फारवर्ड ब्लाक' के 19 अगस्त 1939 के अंक में 'द हाउस आफ द नेशन' शीर्षक टिप्पणी में लिखा था, "कांग्रेस की स्थापना (1885) के बीस वर्ष के भीतर ही बंगभंग (1905) के खिलाफ स्वदेशी और बायकाट के कारण देश का राजनीतिक इतिहास स्व सहायता और आत्म निर्भरता के युग में प्रवेश कर गया। भारत की जागरूक जनता स्व सहायता और आत्म निर्भरता के आंदोलन को नहीं छोड़ सकती। वह स्वाधीनता के जन्मगत अधिकार को नहीं छोड़ सकती। आज भारत के लोग न सिर्फ भारत की स्वाधीनता का स्वप्न देखते हैं, अपितु ऐसा भारत राष्ट्र चाहते हैं जो न्याय, समानता और नई सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था पर आधारित हो।" उसी टिप्पणी में नेताजी ने बंगाल में आए नवजागरण का संदर्भ ग्रहण करते हुए लिखा था, "आधुनिक राष्ट्र के निर्माण के लिए नवजागरण और सामाजिक सुधार आवश्यक है। नवजागरण ने प्रदेशों की सीमाएं तोड़ दीं। राममोहन राय और रामकृष्ण परमहंस ने मानवता का संदेश दिया। हम उसी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत के उत्तराधिकारी हैं।"

सुभाष चंद्र बोस ने 'फारवर्ड ब्लाक' में 'द फ्रेंड्स वायस', 'लीड फ्राम वर्धा', 'आफ द मैरो', 'वार ऐंड साइंस', 'इफ ब्रिटेन ग्रांटेड', 'व्हेदर हाईकमांड', 'आवर वर्किंग कमेटी', 'लीडर मिसलीडिंग', 'रामगढ़', 'आवर प्राब्लेम', 'आवर गोल', 'द बेंगाल कांग्रेस', 'स्टेम द राट', 'द बेंगाल टैंगल', 'टूवार्ड्स कम्युनल यूनिटी', 'एंटी कम्प्रोमाइज कान्फ्रेंस', 'कांग्रेस एड्रेसेज', 'द काल आफ रामगढ़', 'द कैनवस मार्चेज', 'स्वामीजीज मैसेज', 'आवर आफ ट्रायल' और 'फारवर्ड बंगाल' शीर्षक लंबी संपादकीय टिप्पणियां भी लिखीं।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का अखबार ब्रिटिश सामानों के बहिष्कार की अपील और राजनीतिक बंदियों की रिहाई की मांग जोरदार तरीके से करता था। उन दो प्रमुख मांगों को लेकर हर महीने राष्ट्रीय संघर्ष सप्ताह मनाया जाता था और उसकी खबर 'फारवर्ड ब्लाक' में प्रमुखता से छापी जाती थी। कई बार पहले पृष्ठ पर भी उसे छापा जाता था। भारतीय स्वाधीनता और देश के नवनिर्माण के प्रश्न पर पर हीरेन मुखर्जी, अमियनाथ बोस, सोमनाथ लाहिड़ी, नीरेंद्र दत्त मजुमदार, ज्योतिषचंद्र घोष, एस. उपाध्याय, गोपाल हाल्दार, बुद्धदेव बसु, विनय घोष, हुमायूं कबीर, मेघनाथ साहा, एच.वी. कामथ, सहजानंद सरस्वती, नंदलाल बोस, मनमथ नाथ गुप्त फारवर्ड ब्लाक में लिखा करते थे। नेताजी सुभाषचंद्र बोस के बड़े भाई शरतचंद्र बोस भी 'फारवर्ड ब्लाक' में लिखते थे। 'फारवर्ड ब्लाक' के 23 दिसंबर 1939 के अंक में 'इंडिया एंड द प्रेजेंट वार' शीर्षक शरतचंद्र बोस का लेख छपा है। दरअसल वह असेंबली में शरतचंद्र बोस द्वारा दिया गया भाषण है। पृष्ठ 15 से 18 यानी चार पृष्ठों में फैले उस लेख में शरतचंद्र बोस ने स्वाधीनता और लोकतंत्र के सिद्धांतों को मान्यता देने की मांग की है।

'फारवर्ड ब्लाक' में साहित्य-कला पर भी समृद्ध सामग्री छपती थी। 16 सितंबर 1939 के अंक में बुद्धदेव बसु ने 'द हैप्पी राइटर' शीर्षक दो पृष्ठों का लेख लिखा है। उसमें उन्होंने अंग्रेजी के आधुनिक लेखक समरसेट मोगम की आत्मकथा 'समिंग अप' के बहाने उनकी अन्य कृतियों की चर्चा करते हुए उनके खुशहाल जीवन का विवरण प्रस्तुत किया है और बताया है कि 'समिंग अप' के लेखक ने अपने बारे में यह जानकारी भी नहीं दी है कि वह शादीशुदा है अथवा नहीं किंतु अपने उपन्यासों और नाटकों की शैली का बखूबी वर्णन किया है। 'फारवर्ड ब्लाक' के 23 सितंबर 1939 के अंक में 'आवर लिटरेरी फ्रंट' शीर्षक लेख में नरेन सरकार ने साहित्य के समाजीकरण पर बल देते हुए कहा है कि परंपरा के साथ मुठभेड़ करनी पड़ती है। यह मुठभेड़ टैगोर ने की थी। इसीलिए युगों पुरानी परंपरा के संदर्भ में टैगोर एक प्रकाश स्तंभ हैं। उसी लेख में कहा गया है कि परंपरा के आईने में सामाजिक न्याय तभी प्रभावी होगा जब विषमता के यथार्थ कारणों की पहचान कर उन्हें दूर करने का यत्न किया जाय। 'फारवर्ड ब्लाक' के 16 दिसंबर 1939 के अंक में 'आन द लिटरेरी फ्रंट-ए सर्वे आफ रिसेंट लिटरेरी एक्टिविटीज इन चाइना' शीर्षक लेख छपा है। 'फारवर्ड ब्लाक' के 18 नवंबर 1939 के अंक में 'मैक्सिम गोर्की इन मेमोरियम' शीर्षक लेख और 25 नवंबर 1939 के अंक में 'रेल्फ फोक्स-ए राइटर इन आर्म्स' शीर्षक लेख छपे हैं। 30 सितंबर के अंक में एसएस अयंगार की किताब 'प्राब्लेम आफ डेमोक्रेसी इन इंडिया' की समीक्षा और दो दिसंबर 1939 के अंक में रवींद्र साहित्येर परिचय पुस्तक की समीक्षा छपी है। 'फारवर्ड ब्लाक' के हर अंक में पुस्तकों की नियमित समीक्षाएं छपती थीं। 'फारवर्ड ब्लाक' के 19 अगस्त 1939 के अंक में एक पूरे पृष्ठ में रवींद्रनाथ ठाकुर की टिप्पणी छपी है। इसका शीर्षक है-विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर्स एड्रेस। उसमें रवींद्रनाथ साहित्य-कला-संस्कृति के क्षेत्रों में बंगाल के वैभव की चर्चा करते हुए अपील करते हैं कि बंगाल का बाहुबल भारत की स्वाधीनता की सेवा में लगे। यह बाहुबल भारत के बाहुबल को मजबूत करे।

'फारवर्ड ब्लाक' मुख्यतः राजनीतिक समाचार पत्र था किंतु जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं था जिसे अखबार में समाहित नहीं किया गया हो। उस अखबार में साहित्य, कला, संस्कति, शिक्षा, स्त्री संदर्भ, खेती, उद्योग, ग्राम विकास, रक्षा, विज्ञान और विदेशी मामलों पर भी नियमित लेख छपते थे। इस दृष्टि से फारवर्ड ब्लाक को सर्वांगीण अखबार कहा जा सकता है। 'फारवर्ड ब्लाक' के 30 दिसंबर 1939 के अंक में क्राइसिस इन कल्चर, 6 अप्रैल 1940 के अंक में आर्ट एंड सोशलिज्म और 20 अप्रैल 1940 के अंक में आर्ट एंड नेशनल लाइफ , 16 मार्च 1940 और 23 मार्च 1940 के अंकों में इंडियन फिल्म्स इट्स प्राब्लेम एंड पोसिबिलिटीज शीर्षक लेख छपे हैं जो कला तथा संस्कृति के प्रश्नों को प्रभावी ढंग से उठाते हैं। इसी तरह शिक्षा के प्रश्न पर फारवर्ड ब्लाक के 24 फरवरी 1940 और 2 मार्च 1940 के अंकों में नेशनल वैल्यू आफ इजुकेशन शीर्षक लेख दो किस्तों में छपा है। अखबार के 2 दिसंबर 1939 के अंक में 'वूमन मूवमेंट इन इंडिया वांटेड ए राइट आउटलुक' शीर्षक अमिता राय का लेख छपा है जिसमें महिला आंदोलन को उचित परिप्रेक्ष्य दिए जाने पर बल दिया गया है। कुटीर उद्योग पर 'फारवर्ड ब्लाक' के 30 सितंबर 1939 के अंक में 'प्लेस आफ काटेज इंडस्ट्रीज' शीर्षक लेख छपा है। भारत के गांवों के पुनर्निर्माण पर बल देते हुए 'फारवर्ड ब्लाक' के 11 नवंबर 1939 के अंक में 'रुरल रिकंस्ट्रक्शन इन इंडिया' शीर्षक लेख छपा है। इसी तरह कृषि क्षेत्र में योजना बनाने पर बल देते हुए 18 नवंबर 1939 के अंक में 'प्लानिंग इन एग्रीकल्चर' शीर्षक लेख छपा है। 'फारवर्ड ब्लाक' के 2 दिसंबर 1939 के अंक में 'अन द एव आफ स्टार्टिंग नेशनल इंडस्ट्रीज' शीर्षक लेख में राष्ट्रीय उद्योग आरंभ करने के रास्ते सुझाए गए हैं। 'फारवर्ड ब्लाक' के 14 अक्टूबर 1939 के अंक में इंडस्ट्रियल प्लानिंग एंड इकोनामिक एनार्की, इंडिया एंड हर डिफेंस, साइंस एंड नेशनल प्लानिंग शीर्षक लेख छपे हैं। 'फारवर्ड ब्लाक' के 12 अगस्त 1939 के अंक में इंडियाज फारेन पालिसी शीर्षक लेख छपा है। कृषि, उद्योग, विज्ञान, रक्षा की योजनाओं के अलावा आंदोलनों पर भी अखबार की सतर्क नजर रहती थी। गन्ना के श्रमिकों के आंदोलन को समेटती स्वामी सहजानंद सरस्वती की टिप्पणी 'फारवर्ड ब्लाक' के 16 दिसंबर 1939 के अंक में 'केन लेबर स्ट्राइक ऐट बिहटा' शीर्षक से छपी है। 'फारवर्ड ब्लाक' के 12 अगस्त 1939 के अंक में स्वामी सहजानंद सरस्वती की अपील छपी हैः आल इंडिया किसान डेः मेक इट ए ग्रैंड सक्सेस। उसमें अखिल भारतीय किसान दिवस को सफल बनाने का आह्वान किया गया है।

'फारवर्ड ब्लाक' में अंतरराष्ट्रीय मामलों पर भी नियमित लेख छपते थे। उन प्रकाशित लेखों में लेटर फ्राम लंदन, टाइम फैक्टर फार जर्मनी, पोलैंड एंड इट्स एलीज, जापानीज प्राब्लेम इन चाइना, रुमानिया इन एंड आउटसाइड, ब्रिटेन्स वार बजट, न्यू जर्मन सोवियत पार्ट, सोवियत ट्रैप फार जर्मनी, चेंज इन जापानीज एट्टीच्यूड, रसियन रिडल, अमेरिकन न्यूट्रेलिटी, जर्मनी एंड सोवियत रसिया, पोलैंड इन द मेकिंग, सर्चलाइट आन फिनलैंड, इज सोवियत इम्पीयरिस्टिक, फार द सिटिजन वेलफेयर इन यूएसएसआर, मुसालिनीज डायलमा, अमेरिका कैन हाल्ट जापान इजिली, फिनलैंड प्रास्पेक्ट एंड रिट्रोस्पेक्ट, द ट्रैजेडी आफ यूरोपीयन लिबरलिज्म, वार इन फ्रांस इज वार आन फ्रांस, इनसाइड रसियाज मिस्ट्रीज, चाइना फाइट्स इम्पर्लिस्टिक जापान शीर्षक लेख शामिल हैं। फारवर्ड ब्लाक में संपादक के नाम पत्र स्तंभ हर अंक में पूरे पृष्ठ में छपता था।

जिस समय नेताजी सुभाषचंद्र बोस फारवर्ड ब्लाक निकाल रहे थे, उस समय कांग्रेस के भीतर और कतिपय अखबारों में नेताजी सुभाषचंद्र बोस के बारे में दुष्प्रचार भी किया जाता था। उस दुष्प्रचार की बानगी नेताजी की टिप्पणियों और उनके यात्रा संस्मरणों में देखी जा सकती है। सुभाषचंद्र बोस ने 'फारवर्ड ब्लाक' के 9 दिसंबर 1939 के अंक में 'ऐट इट अगेन' शीर्षक संपादकीय में लिखा था, 'फ्रेंड्स आफ इंडिया' यानी 'स्टेट्समैन' मेरे विरुद्ध लगातार घृणा व नापंसदगी को प्रदर्शित करता रहा है, वह अखबार मेरे बारे में तभी नरम रहता है जब कोई दुष्प्रचार न करना हो। नेताजी ने 'ग्लिमसेज आफ माई टूर' शीर्षक से अपना यात्रा वृतांत चार किस्तों में 'फारवर्ड ब्लाक' के 28 अक्टूबर 1939, 4 नवंबर 1939, 18 नवंबर 1939 और 25 नवंबर 1939 के अंकों में प्रकाशित किया। 'फारवर्ड ब्लाक' के 28 अक्टूबर 1939 के अंक में 'ग्लिमसेज आफ माई टूर' की पहली किस्त में नेताजी ने लिखा था, "29 अप्रैल 1939 को कांग्रेस के अध्यक्ष पद से मैंने इस्तीफा दिया। कई लोगों को लगा कि मैंने भयंकर भूल की है। बंगाल मेरे साथ तनकर खड़ा था किंतु बाकी राज्य? मैंने देश का दौरा करने का फैसला किया। मैंने संयुक्त प्रांत के उन्नाव और कानपुर की यात्रा की। भव्य स्वागत हुआ। यूपी से पंजाब गया। फिर लाहौर, उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत, पेशावर, बंबई और मद्रास गया। सहयोग करना तो दूर आंध्र और तमिलनाडु में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्षों ने मेरे दौरे के बायकाट की अपील की थी। पटना में तो गांधीवाद जिंदाबाद के नारे लगाए गए। जूते और पत्थर फेंके गए।"

'फारवर्ड ब्लाक' ने विश्व युद्ध को लेकर कांग्रेस की दुविधा की आलोचना की थी तो नेताजी के विरुद्ध कांग्रेस द्वारा अनुशासनात्मक कार्रवाई किए जाने के विरोध में भी टिप्पणियां प्रकाशित की थी। 'फारवर्ड ब्लाक' के 26 अगस्त 1939 के अंक में 'पपल बैल फ्राम वर्धा' शीर्षक टिप्पणी में कांग्रेस से सुभाषचंद्र बोस के निष्कासन पर समाचार पत्रों व संस्थाओं की प्रतिक्रियाएं प्रकाशित की गई हैं। 'आव्जर्वर' ने लिखा था कि बोस के निष्कासन से कांग्रेस कमजोर होगी। वर्धा इनटालरेंस (असहिष्णु वर्धा) शीर्षक प्रतिक्रिया में पी. सरकार ने कहा था, "सरकार या प्रधानमंत्री के कार्य की आलोचना करने पर क्या ब्रिटिश सरकार चर्चिल के खिलाफ अनुशासनात्मक या वैधानिक कार्रवाई करती है? क्या अमेरिकी सरकार सीनेट के किसी सदस्य द्वारा प्रेस या सार्वजनिक तौर पर सरकार की आलोचना करने पर उस सदस्य के खिलाफ कोई कार्रवाई करती है? निश्चित रूप से नहीं करती। क्योंकि एक लोकतांत्रिक संगठन में लोगों का आलोचना करने का मौलिक अधिकार है।" अनौचित्य की आलोचना करने के मौलिक अधिकार का प्रयोग 'फारवर्ड ब्लाक' निरंतर करता था। अखबार के 4 नवंबर 1939 के अंक में काल आफ ड्राइव अगेंस्ट लेफ्ट विंगः एडाप्ट ए बोल्ड एंड डायनमिक पालिसी शीर्षक टिप्पणी में नेताजी ने गांधी जी की इसलिए आलोचना की कि वे बगैर किसी से मशविरा किए वायसराय से मिलने चले गए और उन्हें समर्थन देने का आश्वासन भी दे आए। इसी तरह इसी टिप्पणी में नेताजी ने कांग्रेस अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद की इसलिए आलोचना की क्योंकि उन्होंने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को यह निर्देश दिया था कि वे सार्वजनिक या निजी बैठकों में ब्रिटेन की आलोचना न करें। नेताजी सुभाषचंद्र बोस की पत्रकारिता में यह विवेक था कि सही बात का अभिनंदन और गलत का विरोध करना चाहिए। इसीलिए सुभाषचंद्र बोस की पत्रकारिता एकांगी होने के दोष से मुक्त है।

नेताजी अंग्रेजी शासन के धुर विरोधी थे किंतु ब्रिटेन के जिन अखबारों ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम का समर्थन किया तो उसकी प्रशंसा करते हुए उन अखबारों के मत को अपने अखबार में पुनर्प्रस्तुत किया। फारवर्ड ब्लाक के सात अक्टूबर 1939 के अंक में ब्रिटिश प्रेस अन इंडियाज डिमांड शीर्षक पूरे पृष्ठ की सामग्री दी गई है जिसमें 'द न्यू स्टेट्समैन एंड नेशन' ने कहा है कि वाशिंगटन से लेकर मास्को तक हर व्यक्ति पूछ रहा है कि हम यह युद्ध किसलिए लड़ रहे हैं। यदि भारत को स्वाधीनता दी जाती है तो हम स्वाधीन भारतीयों के नेतृत्व को जीत सकेंगे। भारत के लिए यह एक परीक्षा की घड़ी है। उसे बताना है कि वह लोकतांत्रिक स्वाधीनता के पक्ष में है या साम्राज्यवाद के पक्ष में या यथास्थितिवाद के पक्ष में। 'मैनचेस्टर गार्जियन' ने भी भारतीय जनता का पूरे हृदय से समर्थन किया है और कहा है कि ब्रिटेन को स्पष्ट करना चाहिए कि वह लोकतंत्र की स्थापना का इच्छुक है कि नहीं। कांग्रेस ने यही मांग की है। 'डेली हेराल्ड' ने भी कहा है कि भारतीयों के बलिदान को ध्यान में रखते हुए अहम प्रश्न यही है कि लोकतंत्र की रक्षा करनी है या साम्राज्यवाद की। 'द स्टार' ने लिखा है कि भारत अधिक लोकतंत्र चाहता है तो उसे स्वाधीनता दी जानी चाहिए। इन ब्रिटिश समाचार पत्रों के रुख का नेताजी जिस भांति स्वागत करते हैं, उसी भांति उनका अखबार फारवर्ड ब्लाक अवसर विशेष पर महात्मा गांधी की भी प्रशंसा करता है। महात्मा गांधी के 71वें वर्ष में प्रवेश करने पर सात अक्टूबर 1939 के अंक में 'फारवर्ड ब्लाक' ने 'महात्मा गांधी' शीर्षक लेख में दक्षिण अफ्रीका से लेकर भारत में सत्याग्रह के संदर्भ में गांधीजी की भूमिका की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी। उसी अंक में 'गांधीज्म' नामक किताब की पी. स्प्राट द्वारा की गई समीक्षा छपी थी जिसमें कहा गया था कि गांधी जी शताब्दी के महानतम नेताओं में एक हैं और भारतीय जीवन और विचार पर उनका खासा प्रभाव है। 'फारवर्ड ब्लाक' के चार नवंबर 1939 के अंक में 'गांधीयन पर्सनाल्टी' शीर्षक लेख में कहा गया था कि गांधीजी के व्यक्तित्व में ही आकर्षण है। इंग्लैंड से लेकर दक्षिण अफ्रीका और भारत में गांधीजी ने आत्मानुशासित जीवन जिया। 'फारवर्ड ब्लाक' के 30 सितंबर 1939 के अंक में 'गांधीजीज अहिंसा' शीर्षक टिप्पणी में कहा गया था कि वैदिक काल से ही अहिंसा को भारत एक धर्म मानता रहा है। बुद्ध और महावीर ने अहिंसा की नीति अपनाई और आधुनिक काल में उसे गांधीजी ने बरता। फारवर्ड ब्लाक में छपे इन लेखों से स्पष्ट है कि गांधीजी के प्रति नेताजी सुभाषचंद्र बोस कितना ऊंचा सम्मान रखते थे।

गांधी जी के प्रति नेताजी की श्रद्धा की पुष्टि 6 जुलाई 1944 को आजाद हिंद रेडियो से महात्मा गांधी और राष्ट्र के नाम प्रसारित उस संदेश से भी होती है जिसमें नेताजी ने पहली बार गांधीजी के लिए 'राष्ट्रपिता' सम्बोधन का प्रयोग किया था।

उस रेडियो प्रसारण में नेताजी ने कहा था, महात्माजी, भारत और भारत के बाहर अनेक भारतीय हैं, जो यह मानते हैं कि संघर्ष के ऐतिहासिक तरीके से ही भारत की आजादी प्राप्त की जा सकती है। ये लोग ईमानदारी से यह अनुभव करते हैं कि ब्रिटिश सरकार नैतिक दबावों अथवा अहिंसक प्रतिरोध के समक्ष घुटने नहीं टेकेगी, फिर भी भारत से बाहर रह रहे भारतीय तरीकों के मतभेद को घरेलू मतभेद जैसा मानते हैं। देश में या विदेश में ऐसा कोई भी भारतीय नहीं होगा जिसे प्रसन्नता नहीं होगी, यदि आपके बताए रास्तों से बिना खून बहाए भारत को आजादी मिल जाए। लेकिन स्थितियों को देखते हुए मेरी यह निश्चित धारणा बन गई है कि यदि हम आजादी चाहते हैं तो हमें खून की नदियां पार करनी होंगी। महात्माजी, मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूँ कि महीनों के विचार मंथन के बाद मैंने इस मुश्किल रास्ते पर चलना स्वीकार किया था। इतने लम्बे अरसे तक अपने देश की जनता की भरसक सेवा करने के बाद मुझे देशद्रोही होने अथवा किसी को मुझे देशद्रोही कहने का अवसर देने की क्या जरूरत थी? मुझे अच्छी तरह जानने वाले मेरे देशवासी इस कुप्रचार के झाँसे में नहीं आएँगे। राष्ट्रीय स्वाभिमान की रक्षा के लिए मैं जिंदगी भर लड़ता रहा हूँ। महात्माजी, अब मैं अपनी अस्थायी सरकार के बारे में कुछ कहना चाहता हूँ। जापान, जर्मनी और सात अन्य मित्र शक्तियों ने आजाद हिंद की अस्थाई सरकार को मान्यता दे दी है और इससे सारी दुनिया में भारतीयों का सम्मान बढ़ा है। इस अस्थायी सरकार का एक ही लक्ष्य है सशस्त्र संघर्ष करके अंग्रेजों की गुलामी से भारत को मुक्त कराना। एक बार दुश्मनों के भारत छोड़ने के बाद और व्यवस्था स्थापित होने के बाद अस्थायी सरकार का काम पूरा हो जाएगा। तब भारत के लोग स्वयं तय करेंगे कि उन्हें कैसी सरकार चाहिए और कौन उस सरकार को चलाएगा। यदि हमारे देशवासी अपने ही प्रयासों से अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हो जाते हैं अथवा यदि ब्रिटिश सरकार हमारे भारत छोड़ो प्रस्ताव को स्वीकार कर लेती है तो हमसे अधिक प्रसन्नता और किसी को नहीं होगी। लेकिन हम यह मानकर चल रहे हैं कि इन दोनों में से कोई भी सम्भव नहीं है और सशस्त्र संघर्ष अनिवार्य है। भारत की आजादी का आखिरी युद्ध शुरू हो चुका है। आजाद हिंद फौज के सैनिक भारत की भूमि पर बहादुरी से लड़ रहे हैं और हर तरह की कठिनाई के बावजूद वे धीरे धीरे किंतु दृढ़ता के साथ आगे बढ़ रहे हैं। जब तक आखिरी ब्रिटिश भारत से बाहर नहीं फेंक दिया जाता और जब तक नई दिल्ली में वायसराय हाउस पर हमारा तिरंगा शान से नहीं लहराता, यह लड़ाई जारी रहेगी। हमारे राष्ट्रपिता, भारत की आजादी की इस पवित्र लड़ाई में हम आपके आशीर्वाद और शुभकामनाओं की कामना कर रहे हैं।

इस तरह हम देख सकते हैं कि नेताजी ने स्वाधीनता की लक्ष्यपूर्ति के लिए अखबार निकाला, तो रेडियो के माध्यम का भी उपयोग किया। 1941 में रेडियो जर्मनी से नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भारतीयों के नाम संदेश में कहा था, "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा।" उसके बाद 1942 में आजाद हिंद रेडियो की स्थापना हुई जो पहले जर्मनी से फिर सिंगापुर और रंगून से भारतीयों के लिए समाचार प्रसारित करता रहा।


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